॥ 3॥ क्यों मारा !
सुधा भार्गव
मैं जब छोटी थी बहुत बातूनी थी I सुख हो या दुःख ,पढाई हो या खेल मेरा मुँह एक बार खुला तो बस खुल गया I इस आदत से स्कूल में कई बार डांट पड़ी I थप्पड़ भी खाने पड़े I
एक बार स्कूल में नई अध्यापिका जी आईं Iउनका नाम था कावेरी भार्गव I वे मुझे बहुत अच्छी लगीं I मैं हमेशा आगे की पंक्ति में बैठना चाहती ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा देख देख सकूँ I अकेली नहीं अपनी प्यारी सहेली मंजीत के साथ ,जिससे जरा -जरा सी बात पल पल उसके कानों में उड़ेल सकूँ I
उस दिन वे खुले आकाश के नीचे खेल के मैदान में कक्षा ले रही थीं I जनवरी की ठण्ड में धूप सुहानी I थी I छात्राएं नीचे दरियों पर बैठी थी और अध्यापिका जी कुर्सी पर I मैं और मंजीत दोनों खरगोश की तरह फुदक कर उन्हीं के चरणों में बैठ गईं I वे कोई सवाल समझा रहीं थीं I आदतन मैं मंजीत के साथ बातों में बह गयी I
हम अध्यापिका जी को बहन जी कहा करते थे सो बहनजी हमें बार -बार चुप कराने की कोशिश कर रही थीं लेकिन गप्पों की आंधी में उनकी आवाज कहाँ सुनाई देती I अचानक तूफान आया - - - -
-सुधा ,खड़ी हो जाओ
मैं खड़ी हो गई
कान उमेठती हुई बोलीं ---मैं पढ़ा रही हूं और तुम कर रही हो बात ! इतनी हिम्मत ! दूसरे हाथ से चटाक- - -बिजली गिर चुकी थी I एक चाँटा मेरे गाल पर जड़ दिया I
मैं तो जड़ हो गयी I आज तक खुलेआम किसी ने चाँटा नहीं मारा I यह क्या हो गया - - - -I
कुछ चेहरे खिल उठे - - चल बच्चू !आज लगी मार ! हर बार निकल जाती थी I
मंजीत आखें नीचे किये अपनी खैर मना रही थी I
अंतिम पीरियड तक मेरे मुँह से बोल न फूटा I मन ही मन बहन जी के खिलाफ षड़यंत्र रच रही थी I
घर आते ही मैंने चुप्पी साध ली I न खाया , न पीया - माँ का मन घायल हो गया I मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं --मुन्नी ,स्कूल में किसी से झगडा हो गया क्या ?
-माँ बहन जी ने मुझे मारा , क्यों मारा I
मुझे चाँटा खाने का दुःख नहीं था I बालमन इस कारण परेशानी मान रहा था कि मैं भी भार्गव और बहन जी भी भार्गव I भार्गव होने के नाते उन्हें मुझसे कोई लगाब नहीं जबकि मैं उनको इतना चाहती हूं I
शाम को पिता जी के आने का इन्तजार भी नहीं किया जा पहुँची नीचे भार्गव फार्मेसी में I
मुँह फुलाते हुए बोली -पिताजी प्रिंसपल के नाम आप तुरंत एक चिट्ठी लिख दीजिये I भार्गव बहन जी ने मुझे क्यों मारा !
मैं बहुत खिसिया गई थी Iजोर -जोर से मेरा भोंपू बजने लगा I पिताजी कुछ आनाकानी करने लगे I मुझे बहुत गुस्सा आया I
-मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगी I मेरे गले से फटे बांस सा सुर निकलने लगा I
अब घबराने की बारी पिता जी की थी I दो दिन तक गुब्बारे सा मुँह लेकर घूमती रही I
तीसरे दिन पिताजी ने कावेरी बहन जी को परिवार सहित घर पर आने का निमंत्रण दिया I शाम को वे अपने पति के साथ आईं I साथ में उनके दो प्यारे-प्यारे बच्चे थे I फूल से बच्चों को छूने का मेरा मन किया मगर दूसरे ही पल गर्दन तन गई--बहनजी ने मारा मुझे ,नहीं जाऊंगी इनके पास I
बहन जी मेरे मन की बात शायद ताड़ गईं I थोड़ी देर में वे स्वयं मेरे पास आईं I दूधिया मुस्कान बिखेरती हुई बोलीं --सुधा बोलोगी नहीं I
मेरा सारा गुस्सा बर्फ की तरह पिघल गया I आकाश की तरह निर्मल ह्रदय लिए उनके बच्चों के साथ खेलने में लग गई I
rewa jajodia
जवाब देंहटाएंto me
Dear Sudhaji,
" KYON MARA" is a very touching story which deals with the child psycology in very effective way.Many congratulations
Rewa
तभी तो कहा है कि बच्चे मन के सच्चे
जवाब देंहटाएंखुद रूठे खुद मन जाएँ
फिर हमजोली बन जाये
इनको किसी से वैर नहीं
इनके लिए कोई गैर नहीं
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