नये वर्ष की नई अभिलाषा ----

बचपन के इन्द्र धनुषी रंगों में भीगे मासूम बच्चे भी इस ब्लॉग को पढ़ें - - - - - - - -

प्यारे बच्चो
एक दिन मैं भी तुम्हारी तरह छोटी थी I अब तो बहुत बड़ी हो गयी हूं I मगर छुटपन की यादें पीछा नहीं छोड़तीं I उन्हीं यादों को मैंने कहानी -किस्सों का रूप देने की कोशिश की है I इन्हें पढ़कर तुम्हारा मनोरंजन होगा और साथ में नई -नई बातें मालूम होंगी i
मुझसे तुम्हें एक वायदा करना पड़ेगा I पढ़ने के बाद एक लाइन लिख कर अपनी दीदी को अवश्य बताओगे कि तुमने कैसा अनुभव किया I इससे मुझे मतलब तुम्हारी दीदी को बहुत खुशी मिलेगी I जानते हो क्यों .......?उसमें तुम्हारे प्यार और भोलेपन की खुशबू होगी -- - - - - -I

सुधा भार्गव
subharga@gmail.com
baalshilp.blogspot.com(बचपन के गलियारे
)
sudhashilp.blogspot.com( केवल लघुकथाएं )
baalkunj.blogspot.com(बच्चों की कहानियां)
http://yatharthta.blogspot.com/(फूल और काँटे)

शनिवार, 24 जुलाई 2010

मैं जब छोटी थी


 ॥ 3॥  क्यों मारा ! 

सुधा  भार्गव







मैं  जब  छोटी  थी  बहुत  बातूनी  थी I सुख  हो  या  दुःख ,पढाई  हो  या  खेल  मेरा  मुँह  एक बार  खुला  तो  बस  खुल  गया I इस  आदत  से  स्कूल  में  कई  बार  डांट  पड़ी I   थप्पड़  भी  खाने  पड़े I

एक  बार  स्कूल  में  नई  अध्यापिका  जी  आईं Iउनका  नाम  था  कावे
री  भार्गव I वे  मुझे  बहुत  अच्छी  लगीं I मैं  हमेशा आगे  की पंक्ति  में  बैठना   चाहती ताकि  उन्हें  ज्यादा  से  ज्यादा देख देख  सकूँ I अकेली  नहीं  अपनी  प्यारी  सहेली  मंजीत  के  साथ ,जिससे  जरा  -जरा  सी  बात  पल पल  उसके  कानों  में  उड़ेल   सकूँ I

उस  दिन  वे  खुले  आकाश  के  नीचे  खेल  के  मैदान  में  कक्षा  ले  रही  थीं  I जनवरी की  ठण्ड  में  धूप  सुहानी   I    थी I छात्राएं नीचे  दरियों  पर  बैठी  थी  और  अध्यापिका  जी  कुर्सी  पर   I मैं    और  मंजीत  दोनों  खरगोश  की  तरह  फुदक कर  उन्हीं के  चरणों  में  बैठ  गईं  I वे  कोई  सवाल   समझा  रहीं  थीं  I आदतन  मैं  मंजीत  के  साथ  बातों  में  बह  गयी  I

हम अध्या
पिका जी  को  बहन  जी  कहा  करते  थे  सो  बहनजी  हमें  बार -बार  चुप  कराने   की  कोशिश  कर  रही  थीं  लेकिन  गप्पों  की  आंधी  में  उनकी  आवाज  कहाँ  सुनाई  देती I  अचानक तूफान  आया - - - -
-सुधा ,खड़ी  हो  जाओ
मैं  खड़ी  हो  गई 

कान  उमेठती हुई  बोलीं ---मैं  पढ़ा  रही  हूं  और  तुम  कर  रही  हो  बा
त  ! इतनी  हिम्मत !                                    दूसरे  हाथ  से  चटाक- - -बिजली  गिर  चुकी  थी  I एक  चाँटा मेरे  गाल  पर  जड़  दिया  I
मैं  तो  जड़  हो  गयी  I आज तक  खुलेआम  किसी  ने  चाँटा  नहीं  मारा I यह  क्या  हो  गया - - - -I
कुछ  चेहरे  खिल  उठे - - चल  बच्चू !आज  लगी  मार ! हर   बार  निकल  जाती  थी I
मंजीत आखें  नीचे  किये  अपनी  खैर  मना
  रही थी I

अंतिम  पीरियड  तक  मेरे  मुँह   से  बोल  न  फूटा  I मन  ही  मन  बहन  जी  के  खिलाफ  षड़यंत्र 
रच  रही  थी  I
घर  आते  ही  मैंने  चुप्पी  साध  ली I  न खाया , न पीया - माँ  का  मन  घायल  हो  गया I                                          मेरे  सिर  पर  हाथ  फेरते  हुए  बोलीं --मुन्नी  ,स्कूल  में  किसी  से  झगडा  हो  गया  क्या ?

-माँ  बहन  जी  ने मुझे  मारा , क्यों  मारा I

मुझे  चाँटा खाने  का  दुःख  नहीं  था I बालमन  इस  कारण  परेशानी  मान  रहा  था कि  मैं  भी 
भार्गव  और  बहन जी  भी  भार्गव I  भार्गव  होने  के  नाते  उन्हें  मुझसे  कोई  लगाब  नहीं जबकि   मैं  उनको  इतना  चाहती  हूं   I

शाम  को  पिता जी  के  आने  का  इन्तजार  भी  नहीं  किया  जा  पहुँची  नीचे  भार्गव फार्मेसी  में  I
मुँह  फुलाते  हुए  बोली -पिताजी  प्रिंसपल  के  नाम  आप  तुरंत  एक  चिट्ठी  लिख  दीजिये I भार्गव  बहन जी  ने  मुझे  क्यों  मारा !
मैं  बहुत  खिसिया  गई  थी  Iजोर -जोर से  मेरा  भोंपू  बजने  लगा I पिताजी  कुछ  आनाकानी  क
रने  लगे  I मुझे  बहुत  गुस्सा  आया I
-मैं  कल  से  स्कूल  नहीं  जाऊं
गी  I मेरे  गले  से  फटे  बांस  सा  सुर  निकलने  लगा  I
अब  घबराने  की  बारी पिता  जी की
  थी  I दो  दिन  तक  गुब्बारे  सा  मुँह  लेकर  घूमती  रही I

तीसरे  दिन  पिताजी  ने  कावेरी  बहन जी  को  परिवार  सहित घर पर  आने  का  निमंत्रण  दिया  I शाम  को  वे  अपने  पति  के  साथ  आईं  I साथ  में  उनके  दो प्या
रे-प्यारे  बच्चे  थे I फूल से  बच्चों  को  छूने  का  मेरा  मन  किया मगर  दूसरे  ही  पल  गर्दन  तन  गई--बहनजी  ने  मारा  मुझे  ,नहीं  जाऊंगी  इनके  पास  I

बहन  जी  मेरे  मन की  बात  शायद  ताड़   गईं  I थोड़ी  देर  में  वे  स्वयं  मेरे  पास  आईं  I दूधिया  मुस्कान  बिखेरती  हुई  बोलीं --सुधा  बोलोगी  नहीं  I

मेरा  सारा  गुस्सा बर्फ   की  तरह  पिघल  गया I  आकाश  की  तरह निर्मल  ह्रदय  लिए  उनके  बच्चों  के  साथ खेलने  में  लग  गई  I  
 
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. rewa jajodia
    to me


    Dear Sudhaji,
    " KYON MARA" is a very touching story which deals with the child psycology in very effective way.Many congratulations
    Rewa

    जवाब देंहटाएं
  2. तभी तो कहा है कि बच्चे मन के सच्चे
    खुद रूठे खुद मन जाएँ
    फिर हमजोली बन जाये
    इनको किसी से वैर नहीं
    इनके लिए कोई गैर नहीं

    जवाब देंहटाएं
  3. I was very encouraged to find this site. I wanted to thank you for this special read. I definitely savored every little bit of it and I have bookmarked you to check out new stuff you post.

    जवाब देंहटाएं