॥4॥ चप्पल चोर
सुधा भार्गव
मैं जब छोटी थी अपने साथी को सबक सिखाने में माहिर थी I
बात कक्षा ६ की है I उन दिनों टाट की पट्टियों पर बैठकर पढ़ते थे I वे दरी की तरह जूट से रंग -बिरंगी बुनी होती थीं और जमीन पर बिछती थीं I चप्पलें हम छात्राएं टाट के नीचे रखती थीं ताकि वे खो न जायें I उन पर हमारी सवारी रहती I
दिल्ली वाले चाचाजी एक बार मेरे लिए बिल्ली सी चप्पलें लाये I उनकी बटन सी भूरी ऑंखें चमकती रहती थीं I मैं बड़े शौक से उन्हें पहनकर स्कूल गई ताकि देखने वाले देखते ही रह जायें ,उनकी त्तारीफ में बोले तो मेरे चेहरे पर चाँद उग आये I मैंने उन्हें टाट के नीचे रख दिया I
टिफिन खाने की आज्ञा कक्षा में नहीं थी I घंटी बजते ही खाने का डिब्बा लेकर उछलती -कूदती खेल के मैदान में चली Iकुछ गिराया -कुछ खाया ,खेला- - - पसीना बहाया और कक्षा में लौट आई जैसे ही टाट पर बैठी - - -चप्पल तो नदारत I
मैं न घबराई न बहिन जी से शिकायत की लेकिन मुड़कर पीछे बैठने वाली लड़की को अवश्य घूरकर देखा I उसका नाम दया था I मुझसे आँखें मिलते ही उसने मुँह दूसरी ओर कर लिया जैसे अजनबी को देखकर मुड़ जाते हैं I मैं समझ गयी -चोर की दादी में तिनका है Iउससे चप्पल रखवाने की कसम खा ली I मैंने बैठी हुई दया के टाट के नीचे दो उँगलियाँ घुसाकर उन्हें टटोलने की कोशिश की पर बात नहीं बनी I उससे लड़ने या कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई पढ़ाई जो चल रही थी I
छुट्टी होने पर मैंने उसका पीछा करने की कोशिश की पर वह तो हिरन की तरह भागे जा रही थी I वह मेरी चप्पलें पहने हुई थी I देखकर बहुत गुस्सा आया मेरी नई -नवेली चप्पलें दूसरे के पैर में और मैं - - - नंगे पाँव !अच्छा हुआ किसी ने देखा नहीं वरना अच्छा -खासा मजाक बन जाता , हजार प्रश्नों की बौछार अलग I चूहे -बिल्ली की दौड़ में अन्य सहेलियाँ बहुत पीछे छूट गई थीं I
अगले दिन मैंने बड़े दुखी मन से पुरानी चप्पलें पहनीं और स्कू ल चल दी I समझ नहीं पा रही थी क्या करूँ ! किसी सहेली से सलाह लेने में भी डर लगता I वह दया से उल्टी -सीधी न जड़ दे I मैं उजागर नहीं करना चाहती थी कि उसने मेरी चप्पलें ली हैं I उसे कोई बुरा -भला कहे यह भी मुझे सहन नहीं था I बड़े धैर्य से मैंने स्कूल में प्रवेश किया I
प्रार्थना सभा से जब मैं कक्षा में लौटी तो देखा -दया अपनी जगह आसन जमाये बैठी है I पढ़ाई शुरू हो गई पर मेरा मन तो कहीं और था -बच्चू मुझसे बचकर कहाँ जायेगी !टिफिन टाइम में देख लूंगी !खामोशी से बुदबुदाई I
टिफिन का समय होते ही छात्राएं भागीं टिफिन ले -लेकर मानो पिंजरे में कैद चिड़ियों को आजादी की हवा में साँस लेने का मौका मिला हो I मुझे भी एक मौका मिला I जब दया को बाहर गये दस मिनट हो गये मैंने धीरे से उसके बैठने की जगह का टाट उठाया I झटसे बिल्ली वाली चप्पलें निकालीं और उसकी जगह पुरानी चप्पलें रख दीं Iअपनी जगह मैं आलती -पालती मारकर बैठ गई I
भूखी ही रही मैं उस दिन I बाहर जाने से डर रही थी कहीं फिर से कोई चालाक लोमड़ी इनके पीछे न पड़ जाये I बड़ी मुश्किल से तो चप्पलें वापस मिलीं I इंतजार करने लगी कब छुट्टी हो और कब भागम - भाग हो I
टन- - टन - - टन - - टनाटन !छुट्टी हो गयी I दिल भी बाग़ -बाग़ हो गया I
विश्व विजेता की तरह गर्व से टाट के नीचे से प्यारी चप्पलें खीचीं ,पहनी और इस बार - - - मैं भर रही थी हिरन सी चौकड़ी I
पीछे -पीछे मुँह लटकाए दया धीमी गति से चल रही थी I डगमगाती सी दुखी सी I
मैं अपनी खुशी ज्यादा देर छिपा न सकी I शाम को खेलते समय कुछ सहेलियों के सामने चिल्ला उठी --मिल गई -मिल गई I
सब ने एक साथ पूछा --क्या ?
-खोई चप्पल मिल गईं - - -कहते हुए खरगोश की तरह फुदकने लगी I
दूसरे दिन कुछ जल्दी ही स्कूल पहुंच गई और जी भरकर अपनी चतुरता का बखान किया I जैसे ही दया कक्षा में घुसी पूरी कक्षा चिल्ला उठी -चप्पल चोर - - - -चप्पल - - - चो - - र I
शोर सुनकर एक बहिन जी कक्षा में आईं I लड़कियां एकदम खामोश !सावधान की मुद्रा में खड़ी हो गईं I उनके जाते ही फिर शोर होने लगा I मगर इस बार दूसरी तरह का शोर था I कोई परीलोक की बातें करता तो कोई गुड़ियों की तो कोई कल्पना जगत में खो सा गया I मैं और दया भी फिर से हिलमिल गये दोस्ती की गंगा में पुन: बह गये I नादान दिल भूल गये -किसने - क्या -किसके साथ किया ?
सुधा जी , यह शृंखला बहुत अच्छी है । अतीत की सैर कराने वाली ।
जवाब देंहटाएंआपके इस संस्मरण ने मेरे इस विचार को पुष्ट कर दिया कि दब्बू बच्चे भावी योजना बनाने में अक्सर तेज-तर्रार सिद्ध होते हैं। आपने 'चप्पल चोर' के कान आखिर काट ही लिए।
जवाब देंहटाएंBCHPN KA TO JBAB HI NHI HAI
जवाब देंहटाएंAAP BCHPN SE PRICHT KRVA KR NAI URJA BHR RHI HAIN
BDHAI
DR. VED VYATHIT
सुधा जी ,
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
बचपन कि एक झलक '' चपपल चोर '' ,के रूप में हम ने खूब सुरती से देखी , पढ़ी ,
मनो हमे ने बचपन जी लिया हो .
सादर
मासूम संस्मरण...अच्छा लगा. कभी मेरे ब्लॉगों पर भी आयें.
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