॥13॥ पतंगबाजी
सुधा भार्गव
सुधा भार्गव
मैं जब छोटी थी आकाश में रंग बिरंगी ,झिलमिलाती पतंगों को देख कर मन करता--- पतंग उड़ाऊँ !पर कभी उड़ा नहीं सकीI जब भी डोर के सहारे पतंग को हवा में उड़ाने की कोशिश की ठक से वह जमीन पर गिर गई और फट गई I मैं दुःख में ड़ूब जाती ऐसा लगता मानो एक नाजुक सी चिड़िया ऊपर से आन गिरी हो और वह उठाने को कह रही हो I मैं धीरे से पतंग को उठाती .फटी जगह को गोंद से चिपकाने की कोशिश करती और कई दिनों तक उसे अलमारी में रखे रहती I