नये वर्ष की नई अभिलाषा ----
बचपन के इन्द्र धनुषी रंगों में भीगे मासूम बच्चे भी इस ब्लॉग को पढ़ें - - - - - - - -
प्यारे बच्चो
एक दिन मैं भी तुम्हारी तरह छोटी थी I अब तो बहुत बड़ी हो गयी हूं I मगर छुटपन की यादें पीछा नहीं छोड़तीं I उन्हीं यादों को मैंने कहानी -किस्सों का रूप देने की कोशिश की है I इन्हें पढ़कर तुम्हारा मनोरंजन होगा और साथ में नई -नई बातें मालूम होंगी i
मुझसे तुम्हें एक वायदा करना पड़ेगा I पढ़ने के बाद एक लाइन लिख कर अपनी दीदी को अवश्य बताओगे कि तुमने कैसा अनुभव किया I इससे मुझे मतलब तुम्हारी दीदी को बहुत खुशी मिलेगी I जानते हो क्यों .......?उसमें तुम्हारे प्यार और भोलेपन की खुशबू होगी -- - - - - -I
सुधा भार्गव
subharga@gmail.com
baalshilp.blogspot.com(बचपन के गलियारे)
sudhashilp.blogspot.com( केवल लघुकथाएं )
baalkunj.blogspot.com(बच्चों की कहानियां)
॥ 3॥ क्यों मारा !
सुधा भार्गव
मैं जब छोटी थी बहुत बातूनी थी I सुख हो या दुःख ,पढाई हो या खेल मेरा मुँह एक बार खुला तो बस खुल गया I इस आदत से स्कूल में कई बार डांट पड़ी I थप्पड़ भी खाने पड़े I
एक बार स्कूल में नई अध्यापिका जी आईं Iउनका नाम था कावेरी भार्गव I वे मुझे बहुत अच्छी लगीं I मैं हमेशा आगे की पंक्ति में बैठना चाहती ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा देख देख सकूँ I अकेली नहीं अपनी प्यारी सहेली मंजीत के साथ ,जिससे जरा -जरा सी बात पल पल उसके कानों में उड़ेल सकूँ I
उस दिन वे खुले आकाश के नीचे खेल के मैदान में कक्षा ले रही थीं I जनवरी की ठण्ड में धूप सुहानी I थी I छात्राएं नीचे दरियों पर बैठी थी और अध्यापिका जी कुर्सी पर I मैं और मंजीत दोनों खरगोश की तरह फुदक कर उन्हीं के चरणों में बैठ गईं I वे कोई सवाल समझा रहीं थीं I आदतन मैं मंजीत के साथ बातों में बह गयी I
हम अध्यापिका जी को बहन जी कहा करते थे सो बहनजी हमें बार -बार चुप कराने की कोशिश कर रही थीं लेकिन गप्पों की आंधी में उनकी आवाज कहाँ सुनाई देती I अचानक तूफान आया - - - -
-सुधा ,खड़ी हो जाओ
मैं खड़ी हो गई
कान उमेठती हुई बोलीं ---मैं पढ़ा रही हूं और तुम कर रही हो बात ! इतनी हिम्मत ! दूसरे हाथ से चटाक- - -बिजली गिर चुकी थी I एक चाँटा मेरे गाल पर जड़ दिया I
मैं तो जड़ हो गयी I आज तक खुलेआम किसी ने चाँटा नहीं मारा I यह क्या हो गया - - - -I
कुछ चेहरे खिल उठे - - चल बच्चू !आज लगी मार ! हर बार निकल जाती थी I
मंजीत आखें नीचे किये अपनी खैर मना रही थी I
अंतिम पीरियड तक मेरे मुँह से बोल न फूटा I मन ही मन बहन जी के खिलाफ षड़यंत्र रच रही थी I
घर आते ही मैंने चुप्पी साध ली I न खाया , न पीया - माँ का मन घायल हो गया I मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं --मुन्नी ,स्कूल में किसी से झगडा हो गया क्या ?
-माँ बहन जी ने मुझे मारा , क्यों मारा I
मुझे चाँटा खाने का दुःख नहीं था I बालमन इस कारण परेशानी मान रहा था कि मैं भी भार्गव और बहन जी भी भार्गव I भार्गव होने के नाते उन्हें मुझसे कोई लगाब नहीं जबकि मैं उनको इतना चाहती हूं I
शाम को पिता जी के आने का इन्तजार भी नहीं किया जा पहुँची नीचे भार्गव फार्मेसी में I
मुँह फुलाते हुए बोली -पिताजी प्रिंसपल के नाम आप तुरंत एक चिट्ठी लिख दीजिये I भार्गव बहन जी ने मुझे क्यों मारा !
मैं बहुत खिसिया गई थी Iजोर -जोर से मेरा भोंपू बजने लगा I पिताजी कुछ आनाकानी करने लगे I मुझे बहुत गुस्सा आया I
-मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगी I मेरे गले से फटे बांस सा सुर निकलने लगा I
अब घबराने की बारी पिता जी की थी I दो दिन तक गुब्बारे सा मुँह लेकर घूमती रही I
तीसरे दिन पिताजी ने कावेरी बहन जी को परिवार सहित घर पर आने का निमंत्रण दिया I शाम को वे अपने पति के साथ आईं I साथ में उनके दो प्यारे-प्यारे बच्चे थे I फूल से बच्चों को छूने का मेरा मन किया मगर दूसरे ही पल गर्दन तन गई--बहनजी ने मारा मुझे ,नहीं जाऊंगी इनके पास I
बहन जी मेरे मन की बात शायद ताड़ गईं I थोड़ी देर में वे स्वयं मेरे पास आईं I दूधिया मुस्कान बिखेरती हुई बोलीं --सुधा बोलोगी नहीं I
मेरा सारा गुस्सा बर्फ की तरह पिघल गया I आकाश की तरह निर्मल ह्रदय लिए उनके बच्चों के साथ खेलने में लग गई I
:
॥ 2॥ दूधचोर
सुधा भार्गव
एक दिन मैंने ऐलान किया -कसेरू ,आज तो मैं चार पेड़े खाऊंगी I
-चार पेड़े !यहाँ खड़े -खड़े तो खा नहीं सकती I चलते रास्ते खाओगी या स्कूल में I यहाँ तो बहीखाते मेंलिख दूँगा -दूध I लेकिन किसी राहगीर ने तुम्हें देख लिया और वह तुम्हारा हुआ चाचा -मामा तो गजब हो जायेगा I सीधे डा . साहब से जाकर कहेगा --मुनिया - - सड़क पर पेड़ा खाते -खाते जा रही थी I सड़क पर तो मीठा खाकर चलते भी नहीं ,भूत चिपट जाते हैं I अगर मिल गयी सहेली कोई ,तो और भी बुरा I वह कहेगी अपनी माँ से ,उसकी माँ कहेगी तुम्हारी माँ से फिर क्या होगा - - - सोच लो अच्छी तरह , आगे तुम्हारी मर्जी I कसेरू ने चिढ़ाने के लहजे में कहा I
मैं वाकई में चिढ़ गयी I तेजतर्रार आवाज में बोली --हाँ - -हाँ चलेगी मेरी मर्जी I लाओ चार पेड़े I
कसेरू ने पत्तों से बनी कटोरी में चार पेड़े रखे और मुझे दे दिये I
प्यार से बोला --लल्ली सभंल कर ले जाओ ,कहीं एक आध गिर न जाय I यदि जमीन पर गिर जाय तो उठाना नहीं I मेरे पास आना ,दूसरा दे दूँगा I धूल लग जाने से खाने की चीज गंदी हो जाती है I
लापरवाही का दिखावा करती हुई मैंने हाँ !हाँ कहा और चल दी I वैसे मैं अन्दर ही अन्दर डर रही थी -किसी ने खाते देख लिया यो क्या होगा - - -! रास्ते में इधर उधर देखती कोई ताक तो नहीं रहा ,झट से आधा पेड़ा दांतों के बीच दबाती I मुँह बंद करके चबाती और गटक जाती i
मैं मुश्किल से दस कदम ही चल पाई थी कि हनुमान जी का मंदिर पड़ा I दरवाजा खुला और मू
र्ति बहुत बड़ी !
लगा -मुझे ही घूर रहे हैं I रामायण -कथा में सुन रखा था हनुमानजी उड़ भी सकते हैं I होश उड़ गये -अब तो जरूर मेरी चोरी पकड़ी जायेगी I ये अभी उड़कर पिताजी को बता देंगे -- मैंने चार पेड़े खाए हैं I
पीछे से भी आवाज आयी --इतनी दोपहरी में कहाँ गयी थी -दरोगा की तरह मास्टर जी बोले I
वे शाम को घर में पढ़ाने आते थे I मुँह में पेड़ा ठुंसा हुआ था I जबाव देने से अच्छा मैंने भाग जाना ठीक समझा I भागते -हांफते स्कूल पहुँची I टिफिन टाइम ख़तम हो चुका था ! एक पेड़ा और बचा था I जल्दी से उसे मुँह में रखा I,आधा सटका, आधा चबाया I हाथ से मुँह पोंछती कक्षा में घुसी I
--देर से आना क्यों हुआ ,खड़ी रहो पूरे पीरियड I अध्यापिका की कर्कश आवाज गूंजी I गनीमत थी एक पैर पर खड़े होने की आज्ञा नहीं मिली I
छुट्टी होते -होते मेरे पेट में गड़गड़ होने लगी मानो बादल गरज रहे हों I तेजी से घर की ओर कदम बढ़ाये I पहुँचने पर निढाल सी पलंग पर लेट गई I पेड़ों की भीड़ से पेट में मरोड़ भी होने लगे I
-जरूर इसने ऊट पटांग खाया है स्कूल में ,तभी पेट ख़राब हो गया I क्यों मुन्नी !क्या खाया ?सच --सच बोलो I
-मैंने तो बस दूध पीया I हाँ , दूध कुछ ज्यादा पी लिया था I
-दूध में जरूर कोई गड़ बड़ रही होगी I अभी बुलाता हूं कसेरू को i
-न ,न , उसे न बुलाइए I उसका कोई दोष नहीं , गलती तो मेरी है I मैंने ही आज पेड़े खा लिए थे I उसने तो मना किया था I
-आज से या बहुत दिनों से पेड़े खाए जा रहे हैं I
-एक महीने- - - से I झूठ बहुत देर तक छिप न सका I
-कसेरू भी बच्ची के साथ बच्चा हो गया ! उसकी हिम्मत कैसे हुई मावे के पेड़े खिलाने की- बाबा आग बरसाने लगे I
उस गरीब पर डांट पड़ने के डर से मैं रो पड़ी | हिचकियाँ लेते हुए बोली --उस पर गुस्सा मत होइये , वह तो मुझे बहुत प्यार करता है i
-ठीक है - - ठीक है ! उससे कुछ नहीं कहूँगा लेकिन दूध पीना होगा रोज I
-रोज - - - !लगा जैसे मुझे सूली पर चढ़ा दिया हो I
बाबा को दया आगई I बोले -इतने कठोर मत बनो I बच्ची ५ दिन दूध पीयेगी ,एक दिन पेड़ा खायेगी I क्यों मुनिया- - - ठीक कह रहा हूं न I
मेरे चेहरे पर हलकी सी मुस्कान फैल गई ,वह भी बनावटी I मैं तो दूध पीना ही नहीं चाहती थी |
दो -तीन दिनों में मैं स्वस्थ हो गई I घर में रोज उपदेश दिये जाते -दूध पीओगी तो हड्डियाँ मजबूत होंगी , ताकत आयेगी ,आँखों की रोशनी बढ़ेगी I मैं मोनी बाबा बन जाती |घर से स्कूल ,स्कूल से कसेरू हलवाई - - - -मेरी यात्रा शुरू हो गई I दूध भी पीना शुरू कर दिया लेकिन हफ्ते में केवल एक दिन और बाकी पॉँच दिन मोटे -मोटे मावे के सुनहरे पेड़े ,जिनकी सुगंध से ही मेरे मुँह में पानी भरा रहता I घर में निश्चित तो कुछ और ही हुआ था पर मैं भी क्या करती ! दूधचोर जो ठहरी I
समाप्त