॥ 2॥ दूधचोर
सुधा भार्गव
प्रथम दिन मैं हलवाई की दुकान पर गयी |गंदे से गद्दे पर मैली चादर बिछी थी |मसनद के सहारे काला सा -मोटा सा आदमी बैठा था I लगता था उसके घड़े से पेट में पैर घुस गये हैं I
उसको देखते ही मैंने मुँह बिचका लिया I लट्ठ सी आवाज में बोली --कसेरू तुम ही हो क्या ?
-अई- - डाक्टर साहब की लल्ली है क्या !बहुत बढ़िया दूध पिलाऊंगा I मिट्टी के सकोरे (बर्तन ) में दूध पीने से खुशबू ही खुशबू आयेगी I
उसने दूध के ऊपर ढेर सी मलाई डालकर सकोरा मुझे पकड़ा दिया I
इतना सारा दूध !सोचकर ही मुझे मितली आने लगी लेकिन मलाई देखकर मेरी आँखों में चमक आगई I बिल्ली की तरह छपछप मलाई खाने लगी I मलाई मेरी कमजोरी रही है I
दो -तीन दिन तक तो मैं दूध नियम से पीती रही I एक दिन मेरी निगाह मावे के पेड़ों पर गई Iफिसल पड़ी उनपर I
-हलवाई चाचा ! मेरा स्वर सुनकर कसेरू चौंक पड़ा I करेले में मिठास कहाँ से आ गयी - - - जरूर कोई ख़ास बात है I
-हलवाई चाचा,आज मैं दूध के बदले पेड़े खाऊंगी I
-पेड़े - - - !कसेरू हकला गया I - - - डा. बाबू को मालूम पड़ गई तो हमारी खैर नहीं I
-पिताजी को मालूम होगा तब न I अपने खाते में तो तुम दूध ही लिखोगे I
कसेरू चुप हो गया I सोचा -एक -दो दिन पेड़ा खाने में हर्ज ही क्या है, बच्चा है - - मन तो चलता ही है I
पेड़े खाते -खाते एक माह गुजर गया I बीच -बीच में कसेरू याद दिलाता रहा -बिटिया रानी दूध पी लिया करो I
बिटिया पर कहने का क्या असर होता वह भी मुझ जैसी दूधचोर पर I
क्रमश :
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