॥15॥ चित्रकूट के रामघाट
सुधा भार्गव
तुलसी के राम
राम के हनुमान
हनुमान के बानर
चित्रकूट में !
मेरी जन्मस्थली अनूपशहर बंदरों के लिए मशहूर है पर मुझे छुटपन में उनसे डर लगता था ।मोहल्ले में
मदारी बंदरों का तमाशा दिखाने आता तो देखती जरूर पर बहुत दूर से ।
खाना बनाने वाली महाराजिन ताई ने एक दिन सम झाया--लल्ली,बंदर से डरेगी तो वह और डराएगा ,उसे देख भागेगी तो वह तेरे पीछे भागेगा इससे तो अच्छा है उनका डटकर मुकाबला कर ।
-मुकाबला करूँ !कैसे ताई ? वह तो मुझे खा जायेगा !
न-- न -- शुभ -शुभ बोल बिटिया ! बन्दर को पास आते देख जो भी हाथ लगे -दांडी लाठिया या पत्थर ,उसे थाम बन्दर की ओर निशाना लगाने का नाटक कर ,वह तुरंत सहम जायेगा फिर धीरे -धीरे उसकी तरफ बढ़-- देखिओ दुम दबा कर भागेगा ।
मैं खुशी से उछल पड़ी और ताली बजाती बोली -अहा! अब तो लाल मुँह के बन्दर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते ।
लेकिन एक महीने बाद ही मुझे कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ा ।
लेकिन एक महीने बाद ही मुझे कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ा ।
गर्मियों की छुट्टियों में हम मामा जी से मिलने बांदा(यू .पी .)गये I वहाँ से चित्रकूट कार से जाने का प्रोग्राम बना ।
मामा जी ने रास्ते में बताया -चित्रकूट मंदाकिनी नदी के किनारे बसा है ।यह नदी छोटी गंगा भी कहलाती है ।
वहां बने सारे घाट रामघाट कहे जाते हैं क्योंकि राम लक्षमण और सीताजी वहां नहाये थे । तुलसीदास जी ने चंदन घिसकर राम जी के तिलक लगाया था ।
वहां बने सारे घाट रामघाट कहे जाते हैं क्योंकि राम लक्षमण और सीताजी वहां नहाये थे । तुलसीदास जी ने चंदन घिसकर राम जी के तिलक लगाया था ।
तब तो मैं भी वहाँ उनसे चन्दन लगवाऊँगी --सोचकर उमंग से भर उठी ।
कार घाट से थोड़ी दूर पर ही रुक गई । सबने अपने -अपने नहाने के कपड़े प्लास्टिक बैग में लिए और चप्पल हाथ में पकड़ लीं क्योंकि हमें नंगे पैर पानी में चलकर जाना था ।एक ओर पहाड़ियों से बहता जल चांदी की तरह चमक रहा था और सामने ----
गंगा की एक पतली धारा इठलाती हुई छोटे -छोटे पत्थरों को भिगोती जा रही थी । उस में छपछप करती मैं आगे -आगे भागने लगी । कुछ दूर ही चली होऊंगी कि कदम रुक गये -----
पेड़ों पर बैठे बन्दर झुण्ड की झुण्ड में गपशप कर रहे थे ,कोई कलाबाजी दिखा रहा था तो कोई बेधड़क आने -जाने वालों को घूर रहा था । मुझे तो लगा यह बंदरों का घाट है |
मैं चारों तरफ लट्टू की तरह आँखें घुमाने लगी कि कोई बानर चिपट न जाये । नये बन्दर नयी जगह--- उनसे टक्कर लेना ठीक न समझा ।अम्मा आईं तो उनसे चिपक कर चलने लगी । तभी एक काले मुँह के बन्दर ने हमारा रास्ता काट दिया |मेरी तो चीख ही .निकल गई -काले मुँह का बन्दर --यह कहाँ से पैदा हो गया ।
सीधे हाथ को लाल मुँह के बन्दर और --और उलटे हाथ को काले मुँह के बन्दर !उनकी पूंछ भी इतनी लम्बी कि उसमें लपेटकर एक झटके में मुझे ऊपर उछाल दें ।
- डर मत बेटी,
-ये कालू क्यों हैं |
-,एक बार जंगल में आग लग गई । हनुमान जी की बानर सेना के कुछ बंदरों के मुँह जल गये,बस उन्हें लंगूर कहने लगे |
माँ की बातें सुनकर मुझमें कुछ हिम्मत आई ।
छोटी गंगा के घाट पर हम सब पहुंचे ,बड़ी भीड़ थी ।
मेरी निगाहें तुलसीदास जी को खोजने में लग गईं । थोड़ी दूर पर देखा - चौकी पर एक लड़का बैठा है और चंदन घिसकर लोगों के तिलक लगा रहा है ।
मैं बड़े अचरज से बोली -
मेरी निगाहें तुलसीदास जी को खोजने में लग गईं । थोड़ी दूर पर देखा - चौकी पर एक लड़का बैठा है और चंदन घिसकर लोगों के तिलक लगा रहा है ।
मैं बड़े अचरज से बोली -
-माँ ,ये तुलसी दास जी तो बड़े छोटे हो गये हैं । आप की रामायण में तो बड़े -बड़े हैं ।
-अरे यह तुलसीदास नहीं !|वे तो कई सौ साल पहले हुए थे ।अब भगवान् के घर बैठे हैं ।
-तो मैं उनसे नहीं मिल सकती ----|मैं दुःख से भर उठी |
बेमन से नहा -धोकर लम्बा सा लाल चंदन का मैंने टीका लगाया और रट लगानी शुरू कर दी --जल्दी चलो भूख लग रही है।
भीगे कपड़ों की डोलची उठाई और लम्बे -लम्बे कदम रखती आगे -आगे चलने लगी |
पीछे से मौसी की आवाज आई ---
-मुन्नी ,साथ साथ चल |यहाँ के बन्दर बड़े खतरनाक हैं |
भला मैं उनकी बात क्यों सुनने लगी फिर बंदरों को भगाने वाली महाराजिन ताई की तरकीब मैं जानती थी |
थोड़ी दूर चलने पर ही मुझे लगा जैसे किसी ने मेरी उँगलियों पर अपने नाखून गड़ाये हों |घबराहट से मेरी पकड़ ढीली हो गई | देखा --एक बन्दर मेरी डोलची लिए भागा जा रहा है ।
मैं चिल्लाई ----बन्दर --बन्दर ! डोलची ले गया |
मामा जी ने तुरंत उसकी तरफ एक केला फेंका । बन्दर ने उसे फुर्ती से लपका और पेड़ पर चढ़ गया ।
डोलची को नीचे ही छोड़कर जुट गया उसे खाने में |
डोलची को नीचे ही छोड़कर जुट गया उसे खाने में |
मैं झट उसको उठा लाई ।
अब तो इस गंगा के घाट को जल्दी छोड़ने में ही भलाई हैं । ये बन्दर फिर न कोई बखेड़ा खड़ा कर दें -मामाजी बोले ।
कार में बैठते ही सब जोर से चिल्लाये --गंगा मैया की जय---श्री रामचंद्र की जय --|मैं चुप ही रही ।
-तेरा मुँह क्यों फूला हुआ है ? माँ ने गुस्से में देखा ।
-मुझे बानर सेना पर बहुत गुस्सा आ रहा है हनुमान जी से मिलूंगी तो इनकी शिकायत जरूर करूंगी |
मेरी बात पर थके चेहरे हँसी से झिलमिलाने लगे ।
मैं गुस्सा और ये सब हँस रहे हैं मुझे और भी ज्यादा गुस्सा आने लगा |
बानर सेना से मिलाने का यह तरीका अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत संस्मरण्।
जवाब देंहटाएंबचपन के संस्मरण सुनाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! पढ़ कर लगा कि शायद हम भी चित्रकूट में घूम आये हें.
जवाब देंहटाएंmaja aaya..umda sansmaran!!
जवाब देंहटाएंबचपन की ये मासूम यादें आपने आत्मीयता से प्रस्तुत कीं हैं ।
जवाब देंहटाएंअजय जी
जवाब देंहटाएंएक्सप्रेस डिब्बे के लिए धन्यवाद |
आप सबकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद |भविष्य में भी आप सबका सहयोग चाहिए |
जवाब देंहटाएंatyadhik sundr prstuti snesh prk bhi v mnornjn yukt bhi
जवाब देंहटाएंbhut 2 bdhai
वेद जी ,अच्छा लगा कि रामघाट की सैर करते -करते आपका मनोरंजन भी हुआ |बहुमूल्य टिप्पणी के लिए शुक्रिया |
हटाएंजीवंत चिंत्रण।
जवाब देंहटाएंबधाई।
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International Bloggers Conference!
सूक्ष्म व सार गर्भित टिप्पणी के लिए धन्यवाद !
हटाएंआदरणीया सुधा कल्प जी ..जय श्री राधे ...बहुत सुन्दर और जीवंत चित्रण.... लगा हम भी चित्रकूट के घाट पे भई संतन की भीड़..... में शामिल हो गए हैं बचपन की यादें ..कहानियाँ ..तुलसीदास जी , हनुमान जी से भी आप ने मिलाया बाल मन मेरा भी प्रफुल्लित हो गया आनंद दाई आप को बधाई
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की हार्दिक बधाई आप सपरिवार तथा मित्र मण्डली को भी ...
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
बचपन के संस्मरण ऐसे लगते अहिं जैसे कल की ही बात हो ... अपना बचपन भी याद आने लगता है ... बहुत जीवंत चित्रण है ....
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