॥6॥पहले कहानी फिर बनूं रानी
सुधा भार्गव
मैं जब छोटी थी कहानी सुनने का बड़ा शौक था I बिना कहानी सुने खाना ही हजम नहीं होता था I पहली कक्षा से ही कृपा शंकर मास्टर जी घर पढ़ाने आया करते I उन्हें मैं मास्साब -मास्साब कहा करती I आते ही नारा लगाते ---मुन्नी रानी करो पढ़ाई |
झट से मेरा जबाव होता -पहले कहानी फिर बनूँगी रानी I वे कहानी सुनाते तभी मेरे बस्ते का दरवाजा खुलता I रोज एक कहानी सोच कर आते I कहानी सुनाने की मेरी जिद पर उन्होंने कभी आँखें नीली पीली नहीं कीं I
एक शनिवार को मेरी परीक्षा होने वाली थी I शुक्रवार को सीधे पिताजी के सामने जा खड़े हुए और बोले
--आज बिटिया को आपके आफिस में पास ही पड़ी मेज -कुर्सी पर बैठकर पढ़ाना चाहता हूं I
मैं उनके पीछे आज्ञाकारी बालिका की तरह सिर झुकाए खड़ी थी I पिताश्री समझ गये -जरूर मैंने कोई गुल खिलाया होगा I उन्होंने हंसकर कुर्सी की ओर बैठने का इशारा किया I
मेरी तो बोलती बंद- - ! मास्टर जी बस बोले जा रहे थे ,समझाए जा रहे थे I बीच -बीच में उपदेशों की झड़ी- - अच्छे बच्चे यह करते हैं ,अच्छे बच्चे वह करते हैं I उधर पिताजीकी तरफ से काली घटाओं के आने का डर I फँस गयी - - - बीच में मैं I जैसे ही मास्टर जी उठे मैं भी उठ गई ,भागी -- - उनके पीछे दरवाजे तक गयी और धीरे से बोली -
-मास्साब , मेरी- - कहानी !
- अभी तो मैं घूमने जाऊंगा कल जरूर सुना देंगे I
-लेकिन आज की कहानी !
मास्टर जी पसीज गये I मुस्कान बिखेरते बोले --ठीक है ,शाम को आ जाना I
मैं तो फूल की तरह खिल गई Iजल्दी -जल्दी बस्ता समेटा I दूध पीकर बाहर निकल गयी I खेलने में मन कहाँ रमने वाला !पलकें तो मास्टरजी के घर के रास्ते में बिछी हुई थीं I
उनके घर पहुँची तो संकोच में लिपटे पैरों ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया I आगे बढूँ या लौट जाऊँ - - -दुविधा में जान - - -I वे आँगन में चारपाई पर बैठे थे I उनके सामने कांसे की चमकती थाली में घी से चुपड़ी मक्के की गर्म -गर्म रोटी रखी थी जो सरसों की सब्जी के साथ अपनी सुगंध फैला रही थी I
आओ ,बैठो -- देख तो बेला कौन आया है ! मुनिया के लिए भी मक्के की रोटी लाओ I यह भी हमारे साथ खायेगी I उन्होंने अपनी बेटी से कहा I मैं खाने तो बैठ गई मगर अन्दर से धुकधुकी शुरू --- -खाते ही -खाते अँधेरा हो गया तो मेरी कहानी का क्या होगा ! अच्छी बच्ची की तरह रात आने से पहले घर भी लौटना था I इतने में मास्टर जी बोले - -- खाओ -खाओ , वरना कहानी कैसे सुनोगी I
मेरी आँखों. में चमक आगई रोटी का स्वाद दुगुना हो गया I - -रोटी तो बहुत मीठी है | मैं बोली I
-चलो इसी रोटी की मिठास की कहानी सुनाता हूं - - - I
एक चिड़िया थी I फुर्र से उड़ी I बुढ़िया के आँगन में उतर पड़ी I चार मक्की के दाने खाए ,चार चोंच में भरे फिर मेरे घर की कोठरी में उतर पड़ी I -फिर क्या हुआ ! --बार -बार मेरी कोठरी में आती और दाने रख जाती I दानों की पिसाई हुई I
-कैसे पिसाई हुई मास्साब जी ?
-चक्की से !
-फिर क्या हुआ !
-मक्की के आटे की रोटियां बनाईं |चिड़िया आई , भर पेट रोटी खाई I लम्बी सी उसने डकार ली Iमुझसे
बोली --तुम भी खाओ दूसरों को भी खिलाओ I
- इसीलिये मैं भी खा रहा हूं ,तुम्हें भी खिला रहा हूं I
चिड़िया के मक्के के दाने मेरे दिमाग में सज से गयेI
दूसरे दिन खाना बनाने वाली महाराजिन ताई से बोली-
मैं मक्के की रोटी खाऊंगी I उसने गाय के घी में डूबी छोटी -छोटी रोटियां बनाईं I
-ये मास्साब की रोटी की तरह मीठी नहीं हैं I मैं खाते -खाते बोली |खाती जाती और बुरा सा मुहँ भी बना देती I
-उनकी रोटी में ऐसी क्या ख़ास बात है हम भी तो सुनें- - - I
-उन के घर में जो चिड़िया आई ,उसे तुम नहीं जानतीं, वह जो दाना लाई उसे पीसकर मास्टरनी जी ने रोटी बनाई I आह ! क्या मीठी !
-इस रोटी का आटा और मास्टरजी की रोटी का आटा एक सा ही है I -नहीं ! नहीं ! उनका प्यारी सी चिड़िया के दाने का मीठा -मीठा आटा था I
मेरी बात पर महाराजिन ताई हँस पड़ी I
-मेरे मास्टर जी क्या झूठ बोलेंगे I जाओ - - - मैं तुमसे नहीं बोलती I पैर पटकती हुई रसोई से बाहर चली गई I
उनके हाथ की बनी मकई की रोटी मैंने महीनों तक नहीं खाई I
बहुत समय बाद जब विश्वास हुआ कि मास्साब के घर का और मेरे घर का मकई आटा समान ही था I उन्होंने तो बस मुझे कहानी सुनाई थी तो अपने बुद्धूपन पर खुद ही हँस पड़ी I
तभी मुझे कुछ उड़ता हुआ नजर आया I ओह !कहीं मास्साब की चिड़िया मेरे आँगन में तो नहीं उतरना चाहती - - - पर - - -नहीं - - ऐसा कुछ नहीं हुआ - - -बल्कि माँ -बाबा के आँगन से मेरा थोड़ा बचपन उड़ गया I
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बचपन की यादों की तो बात ही निराली होती है ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखने की शैली बहुत अच्छी लगी । मन मोह लिया ।
sudha jee ,
जवाब देंहटाएंnamaskaar !
achchi hai kahani 'sansmarnatmak 'bacpan isi liye masoom hota hai ki sirf ithi mithi baato se hi bade kaam niklva lete hai ,
badhai !