मैं वर्तमान में सोई हुई थी |गिलहरी से दिन कब फुदक गये पता ही नहीं चला |अचानक अतीत की धूप ,दूध की तरह सुखद मेरे अंगों पर छा गयी |अल्हड़ सी बालिका बन उसमें नहाई और अप्रत्याशित खुशी से छलक गयी |
मैंने अनुभव किया बचपन की पाक गालियाँ अतीत के कपाल पर चंदन के टीके की तरह सजी हैं|बालपन की धमाचौकड़ी , शैतानी और मासूमियत को ब्लाग के फ्रेम में क्यों न जड़ दिया जाय -यह विचार आते ही एक मीठी धुन बजने लगी जो ताजी हवा के झोंके की तरह खुशनुमा है |
नये वर्ष की नई अभिलाषा ----
बचपन के इन्द्र धनुषी रंगों में भीगे मासूम बच्चे भी इस ब्लॉग को पढ़ें - - - - - - - -
प्यारे बच्चो एक दिन मैं भी तुम्हारी तरह छोटी थी I अब तो बहुत बड़ी हो गयी हूं I मगर छुटपन की यादें पीछा नहीं छोड़तीं I उन्हीं यादों को मैंने कहानी -किस्सों का रूप देने की कोशिश की है I इन्हें पढ़कर तुम्हारा मनोरंजन होगा और साथ में नई -नई बातें मालूम होंगी i मुझसे तुम्हें एक वायदा करना पड़ेगा I पढ़ने के बाद एक लाइन लिख कर अपनी दीदी को अवश्य बताओगे कि तुमने कैसा अनुभव किया I इससे मुझे मतलब तुम्हारी दीदी को बहुत खुशी मिलेगी I जानते हो क्यों .......?उसमें तुम्हारे प्यार और भोलेपन की खुशबू होगी -- - - - - -I
सुधा भार्गव subharga@gmail.com baalshilp.blogspot.com(बचपन के गलियारे) sudhashilp.blogspot.com( केवल लघुकथाएं ) baalkunj.blogspot.com(बच्चों की कहानियां)
मैं जब छोटी थी बहुत बातूनी थी I सुख हो या दुःख ,पढाई हो या खेल मेरा मुँह एक बार खुला तो बस खुल गया I इस आदत से स्कूल में कई बार डांट पड़ी I थप्पड़ भी खाने पड़े I
एक बार स्कूल में नई अध्यापिका जी आईं Iउनका नाम था कावेरी भार्गव I वे मुझे बहुत अच्छी लगीं I मैं हमेशा आगे की पंक्ति में बैठना चाहती ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा देख देख सकूँ I अकेली नहीं अपनी प्यारी सहेली मंजीत के साथ ,जिससे जरा -जरा सी बात पल पल उसके कानों में उड़ेल सकूँ I
उस दिन वे खुले आकाश के नीचे खेल के मैदान में कक्षा ले रही थीं I जनवरी की ठण्ड में धूप सुहानी I थी I छात्राएं नीचे दरियों पर बैठी थी और अध्यापिका जी कुर्सी पर I मैं और मंजीत दोनों खरगोश की तरह फुदक कर उन्हीं के चरणों में बैठ गईं I वे कोई सवाल समझा रहीं थीं I आदतन मैं मंजीत के साथ बातों में बह गयी I
हम अध्यापिका जी को बहन जी कहा करते थे सो बहनजी हमें बार -बार चुप कराने की कोशिश कर रही थीं लेकिन गप्पों की आंधी में उनकी आवाज कहाँ सुनाई देती I अचानक तूफान आया - - - -
-सुधा ,खड़ी हो जाओ
मैं खड़ी हो गई
कान उमेठती हुई बोलीं ---मैं पढ़ा रही हूं और तुम कर रही हो बात ! इतनी हिम्मत ! दूसरे हाथ से चटाक- - -बिजली गिर चुकी थी I एक चाँटा मेरे गाल पर जड़ दिया I मैं तो जड़ हो गयी I आज तक खुलेआम किसी ने चाँटा नहीं मारा I यह क्या हो गया - - - -I
कुछ चेहरे खिल उठे - - चल बच्चू !आज लगी मार ! हर बार निकल जाती थी I
मंजीत आखें नीचे किये अपनी खैर मना रही थी I
अंतिम पीरियड तक मेरे मुँह से बोल न फूटा I मन ही मन बहन जी के खिलाफ षड़यंत्र रच रही थी I
घर आते ही मैंने चुप्पी साध ली I न खाया , न पीया - माँ का मन घायल हो गया I मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं --मुन्नी ,स्कूल में किसी से झगडा हो गया क्या ? -माँ बहन जी ने मुझे मारा , क्यों मारा I
मुझे चाँटा खाने का दुःख नहीं था I बालमन इस कारण परेशानी मान रहा था कि मैं भी भार्गव और बहन जी भी भार्गव I भार्गव होने के नाते उन्हें मुझसे कोई लगाब नहीं जबकि मैं उनको इतना चाहती हूं I
शाम को पिता जी के आने का इन्तजार भी नहीं किया जा पहुँची नीचे भार्गव फार्मेसी में I
मुँह फुलाते हुए बोली -पिताजी प्रिंसपल के नाम आप तुरंत एक चिट्ठी लिख दीजिये I भार्गव बहन जी ने मुझे क्यों मारा !
मैं बहुत खिसिया गई थी Iजोर -जोर से मेरा भोंपू बजने लगा I पिताजी कुछ आनाकानी करने लगे I मुझे बहुत गुस्सा आया I
-मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगी I मेरे गले से फटे बांस सा सुर निकलने लगा I
अब घबराने की बारी पिता जी की थी I दो दिन तक गुब्बारे सा मुँह लेकर घूमती रही I
तीसरे दिन पिताजी ने कावेरी बहन जी को परिवार सहित घर पर आने का निमंत्रण दिया I शाम को वे अपने पति के साथ आईं I साथ में उनके दो प्यारे-प्यारे बच्चे थे I फूल से बच्चों को छूने का मेरा मन किया मगर दूसरे ही पल गर्दन तन गई--बहनजी ने मारा मुझे ,नहीं जाऊंगी इनके पास I
बहन जी मेरे मन की बात शायद ताड़ गईं I थोड़ी देर में वे स्वयं मेरे पास आईं I दूधिया मुस्कान बिखेरती हुई बोलीं --सुधा बोलोगी नहीं I मेरा सारा गुस्सा बर्फ की तरह पिघल गया I आकाश की तरह निर्मल ह्रदय लिए उनके बच्चों के साथ खेलने में लग गई I
एकदिनमैंनेऐलानकिया -कसेरू ,आजतोमैंचारपेड़ेखाऊंगी I -चारपेड़े !यहाँखड़े -खड़ेतोखानहींसकती I चलतेरास्तेखाओगीयास्कूलमें I यहाँतोबहीखातेमेंलिखदूँगा -दूध I लेकिनकिसीराहगीरनेतुम्हेंदेखलियाऔरवहतुम्हाराहुआचाचा -मामातोगजबहोजायेगा I सीधेडा. साहबसेजाकरकहेगा --मुनिया - - सड़कपरपेड़ाखाते -खातेजारहीथी I सड़कपरतोमीठाखाकरचलतेभीनहीं ,भूतचिपटजातेहैं I अगरमिलगयीसहेलीकोई ,तोऔरभीबुरा I वहकहेगीअपनीमाँसे ,उसकीमाँकहेगीतुम्हारीमाँसेफिरक्याहोगा - - - सोचलोअच्छीतरह , आगेतुम्हारीमर्जी I कसेरूनेचिढ़ानेकेलहजेमेंकहा I
मैंवाकईमेंचिढ़गयी I तेजतर्रारआवाजमेंबोली --हाँ - -हाँचलेगीमेरीमर्जी I लाओचारपेड़े I
कसेरूनेपत्तोंसेबनीकटोरीमेंचारपेड़ेरखेऔरमुझेदेदिये I प्यारसेबोला --लल्लीसभंलकरलेजाओ ,कहींएकआधगिरनजाय I यदिजमीनपरगिरजायतोउठानानहीं I मेरेपासआना ,दूसरादेदूँगा I धूललगजानेसेखानेकीचीजगंदीहोजातीहै I लापरवाहीकादिखावाकरतीहुईमैंनेहाँ !हाँकहाऔरचलदी I वैसेमैंअन्दरहीअन्दरडररहीथी -किसीनेखातेदेखलियायोक्याहोगा - - -! रास्तेमेंइधरउधरदेखतीकोईताकतोनहींरहा ,झटसेआधापेड़ादांतोंकेबीचदबाती I मुँहबंदकरकेचबातीऔरगटकजाती i
मैंमुश्किलसेदसकदमहीचलपाईथीकिहनुमानजीकामंदिरपड़ा I दरवाजाखुलाऔरमूर्ति बहुत बड़ी ! लगा -मुझेहीघूररहेहैं I रामायण -कथामेंसुनरखाथाहनुमानजीउड़भीसकतेहैं Iहोशउड़गये-अबतोजरूरमेरीचोरीपकड़ीजायेगी I येअभीउड़करपिताजीकोबतादेंगे -- मैंनेचारपेड़ेखाएहैं I पीछेसेभीआवाजआयी --इतनीदोपहरीमेंकहाँगयीथी -दरोगाकीतरहमास्टरजीबोले I वेशामकोघरमेंपढ़ानेआतेथे I मुँहमेंपेड़ाठुंसाहुआथा I जबावदेनेसेअच्छामैंनेभागजानाठीकसमझा I भागते -हांफतेस्कूलपहुँची I टिफिनटाइमख़तमहोचुकाथा ! एकपेड़ाऔरबचाथा I जल्दीसेउसेमुँहमेंरखा I,आधासटका, आधाचबाया I हाथसेमुँहपोंछतीकक्षामेंघुसी I --देरसेआनाक्योंहुआ ,खड़ीरहोपूरेपीरियड I अध्यापिकाकीकर्कशआवाजगूंजी I गनीमतथीएकपैरपरखड़ेहोनेकीआज्ञानहींमिली I छुट्टीहोते -होतेमेरेपेटमेंगड़गड़होनेलगीमानोबादलगरजरहेहों I तेजीसेघरकीओरकदमबढ़ाये I पहुँचनेपरनिढालसीपलंगपरलेटगई I पेड़ोंकीभीड़सेपेटमेंमरोड़भीहोनेलगे I -जरूरइसनेऊटपटांगखायाहैस्कूलमें ,तभीपेटख़राबहोगया I क्योंमुन्नी !क्याखाया ?सच --सचबोलो I -मैंनेतोबसदूधपीया I हाँ , दूधकुछज्यादापीलियाथा I -दूधमेंजरूरकोईगड़बड़रहीहोगी I अभीबुलाताहूंकसेरूको i -न ,न , उसेनबुलाइए I उसकाकोईदोषनहीं , गलतीतोमेरीहै I मैंनेहीआजपेड़ेखालिएथे I उसनेतोमनाकियाथा I -आजसेयाबहुतदिनोंसेपेड़ेखाएजारहेहैं I -एकमहीने- - - से I झूठबहुतदेरतकछिपनसका I -कसेरूभीबच्चीकेसाथबच्चाहोगया ! उसकीहिम्मतकैसेहुईमावेकेपेड़ेखिलानेकी- बाबाआगबरसानेलगे I उसगरीबपरडांटपड़नेकेडरसेमैंरोपड़ी | हिचकियाँलेतेहुएबोली --उसपरगुस्सामतहोइये , वहतोमुझेबहुतप्यारकरताहै i -ठीकहै - - ठीकहै ! उससेकुछनहींकहूँगालेकिनदूधपीनाहोगारोज I -रोज - - - !लगाजैसेमुझेसूलीपरचढ़ादियाहो I बाबाकोदयाआगई I बोले -इतनेकठोरमतबनो I बच्ची५दिनदूधपीयेगी ,एकदिनपेड़ाखायेगी I क्योंमुनिया- - - ठीककहरहाहूंन I मेरेचेहरेपरहलकीसीमुस्कानफैलगई ,वहभीबनावटी I मैंतोदूधपीनाहीनहींचाहतीथी | दो -तीनदिनोंमेंमैंस्वस्थहोगई I घरमेंरोजउपदेशदियेजाते -दूधपीओगीतोहड्डियाँमजबूतहोंगी , ताकतआयेगी ,आँखोंकीरोशनीबढ़ेगी I मैंमोनी बाबा बन जाती |घर से स्कूल ,स्कूल से कसेरू हलवाई - - - -मेरी यात्रा शुरू हो गई I दूध भी पीना शुरू कर दिया लेकिन हफ्ते में केवल एक दिन और बाकी पॉँच दिन मोटे -मोटे मावे के सुनहरे पेड़े ,जिनकी सुगंध से ही मेरे मुँह में पानी भरा रहता I घर में निश्चित तो कुछ और ही हुआ था पर मैं भी क्या करती ! दूधचोर जो ठहरी I समाप्त