॥ 8॥ गुड़िया की शादी
सुधा भार्गव
मैं जब छोटी थी धुन की बड़ी पक्की थी |मन में एक बार जो समाया वह पूरा होना ही चाहिए I
एक बार मैं चचेरी बहन गौरी की शादी में कन्नौज गई I लौटते समय एक ही बात रह -रहकर सूझ रही थी -मैं गुड़िया की शादी करूँगी I
बिना देर किये अपनी सहेलियों को बुलाया और कहा -मैं तो गुड़िया की शादी करूँगी I मगर उसमें बहुत काम होता है Iमेरी मदद करो I गुड़िया तो मेरे पास है लेकिन गुड्डा चाहिए I
-गुड्डा मेरे पास है I मंजू चहकी I
-फिर तो बन गया काम Iअब शादी कब की जाए- - - -I
-परीक्षा के बाद ----मई में I गाजे -बाजे के साथ रचाएंगे शादी I
निंटी,पिंटी ,चींटी गला फाड़ने लगीं ----
-मैं तो ढोल बजाऊँगी i
-मैं गाना गाऊँगी I
-भांगड़ा तो मैं करूँगी I
-अरे चुप कान फोड़ दिये --कह दिया न ,पहले पढ़ना है I
मेरी डांट खाकर सब घर चली गईं I
परीक्षा ख़तम होते ही मेरी तो नींद उड़ गई I गुड़िया की शादी के कुछ ही दिन रह गये थे I
भागी -भागी बाबूराम बढ़ई के पास गयीI वे दवाइयों के लिए डिब्बे बनाते थे I
-बढ़ई ताऊ ,५मई को मेरी गुड़िया की शादी है I लकड़ी की एक गाडी बना दो I उस पर दूल्हा बैठेगा और बारात निकलेगी I
-हमें भी शामिल होना है उस बारात में I
-ना ताऊ - - -तुम्हारी मूछें देखकर मेरी गुड़िया डर जायेगी वैसे भी बारात बच्चों की है I
रात को अम्मा -पिताजी खाने कोबैठे I मैंने एलान किया -
५ मई को मेरी गुड़िया की शादी है Iबहुत से बराती आयेंगे I उन्हें कुछ तो खिलाना होगा Iसोच रही हूं-- मीठी गोलियां खाने को दे देंगे iआप नंदू हलवाई को कहकर दवा वाली गोल -गोल छोटी- बड़ी गोलियां बनवा दीजियेगा I
--अम्मा ,गुड़िया को सुन्दर से कपड़े चाहिए I उसके लिए चमकीला -चमकीला लहंगा बनाना गौरी दीदी जैसा I शादी में पहने वे बहत अच्छी लग रही थीं I
मेरी चाची को पूजा का बड़ा शौक था I वे बाल -गोपाल के लिए रंग -बिरंगी पोशाकें बनातीं और पुरानी पोशाकें सावधानी से रखतीं Iएकदिन दबे पाँव बिल्ली की तरह ताक -झांक करती उनके कमरे में घुस गई Iसिंहासन के नीचे कुछ कपड़े दिखाई दियेI बस खींच लिये ३-४ जोड़ी कपड़े I हो गया कपड़ों का काम पूरा I
बेदा की अम्मा खाना बनाया करती थी I उससे बड़े रौब से बोली -मिट्टी का छोटा सा एक चूल्हा बना दो गुड़िया की शादी के लिए I उसपर पूरी -कचौरी और लड्डू बनाने है I
--मगर नमकीन लड्डू बना दूँ तो कैसा रहेगा !
--बेदा की अम्मा - - -तुम मुझसे इतनी बड़ी हो- - - फिर भी नहीं मालूम - - -लड्डू मीठे ही होते हैं I मुझे तो तुमसे बहुत डर लगने लगा है I
-काहे का डर !हमसे - - -बिटिया - - -I
-यही कि तुमने कचौरी मीठी बना दीऔर हलुए में डाल दिया नमक - - हमारी तो बड़ी बदनामी हो जायेगी I मैंने परेशान होकर अपना माथा थाम लिया i
-बिटिया चिंता न करो ,हम सब ठीक करेंगे I
मैंने सिर उठाया और उंगली तानते बोली --
--देखो बेदा की अम्मा - - -कोई भूल न करना I
-हम कान पकड़े है कोई भूल नाही करेंगे I
मेरे जाते ही वह बुदबुदाई --बाप रे !छोरी तो पटाखा है I
शादी का दिन आ पहुँचा I मैं सुबह से ही मधुमक्खी की तरह कोई न कोई काम में लग जाती थी I
मंजू भी आ पहुँची I साथ में था गुड्डा --धोती कुरता पहने ,सिर पर मुकुट, झलझल करती मोती की लड़ियों से ढका चेहरा I
-अरे दूल्हा तो दिखाओ I नीनाबहुत उतावली थी I
-ना बाबा - - - -उसे नजर लग जायेगी !और हाँ - - - दुल्हन का घूँघट नीचा कर दो I उसको भी तो किसी चुड़ैल की नजर लग सकती है I मंजू बोली i
रंग -बिरंगे कागजों से सजा लकड़ी का रथ बनाकर ताऊ ले आए I उस पर गुड्डा -गुड़िया बैठा दिये Iअचानक मैं हड़बड़ा उठी - - गुड़िया केसाथी छुटकी-बड़की ,मोटू -पतलू ,कानू -लल्लू भी तो जायेंगे इ उन्हें कहाँ बिठाऊँ ! ताऊ - --अब मैं क्या करूँ - - - !
-मैं अभी लाया दूसरी गाड़ी ,परेशान न हो मुन्नी I
वे भागे -भागे गये ,खटर -पटर की आवाज के साथ लौट आये I एक मिनट को लगा भूचाल आ गया है I
उनकी -इस खटपटिया गाड़ी में सारा गुड़िया नगर समा गयाI
मुन्ना ढोलक को गले में लटकाकर जोर से थप -ठप करने लगा I
मंजू का भाई मुस्कान उड़ेलता छोटे --छोटे - हाथों से कीर्तन करने के मजीरे आपस में भिड़ाता
उसका दोस्त मेले से कागज का बिगुल ले आया I मुँह से बजाते ही पों -पों की आवाज होती I
मेरी सखियाँ कोयल से गीत गाती आगे बढ़ रही थीं I
शैतान चुन्नू गुड्डे -गुड़िया का रथ खींचते समय बार बार झटका दे देता I मेरी तो जान ही निकल जाती- - - कहीं गिर गये तो ----!
खट पटिया गाडी से तो जरूर कभी बौनी गुड़िया गिर जाती तो कभी लम्बू पर चतुर तुनतुनिया उन्हें फिर बैठा देता I
अद्भुत थी बारात I
मंजू रथ केपीछे से गेंदा -गुलाब की बरसात करते हुए अपनी खुशी छिपा नहीं पा रही थी I
घर के पास ही एक तिकोना मैदान था I बारात उसके चक्कर लगाती रही I जब वह थक गयी तो मेरे दरवाजे पर आकर रुक गई I
मैंने गुड्डा -गुड़िया को छोटे -छोटे फूलों की मालाएं पहनाई I खुशी मेरे चेहरे से छलकी जाती थी Iधीरे से उन्हें रथ से उतारकर अन्दर ले गई I
गोल -गप्पे और चाट -पकौड़ी देख बराती ढोल -मजीरा छोड़ उन पर टूट पड़े I कुछ मक्खी की तरह बालूशाही ,इमारती और लड्डू से चिपक गये I बाबा ने बारातियों को चूरन और टाफियां भी दीं I
विदा का समय आ गया I बाराती खुश ,मैं उदास I
-मेरी गुड़िया पराये घर जा रही है , कैसे रहूँगी उसके बिना I
--अरे इसमें दुखी होने की क्या बात है !तुम उसे चाहे जब ले आना I
-ओह मंजू ---तू समझती नहीं !ऐसा कहना जरूरी है Iगौरी दीदी जब ससुराल जा रही थीं तो मौसी ने ऐसा ही कहा था I वे उसे गले लगाकर रोई भी बहुत थीं I मेरे तो आंसू ही नहीं निकल रहे---- मेरी गुड़िया भी नहीं रोती--- अव मैं क्या करूँ !
दादी -बाबा ,चाची -अम्मा ने हमारी बातें सुन लीं I हँसते -हँसते उनका तो पेट दुखने लगा और आँखों से आँसू निकल आये I
मैंने समझा वे बहुत दुखी हैं ,उनका दुःख मुझसे देखा नहीं गया और दहाड़ मारकर रो पड़ी I
अचानक बारात से शोरगुल उठने लगा - - - - -
नहीं जायेगा ...नहीं जायेगा
ससुराल से दूल्हा नहीं जायेगा
ले आई ...ले आई
गुड़िया गुड्डे को ली आई I
मैं परेशान हो उठी I
-मुन्ना-- क्या हुआ !
-मुझे कुछ नहीं हुआ दूल्हे राजा को कुछ हो गया है | वह तो अपने घर जाना ही नहीं चाहता I
-क्यों ?
-खूब लड्डू -कचौरी खाने को जो मिले हैं ,अब तो ससुराल में बैठकर रोज माल -पुए उड़ायेगा I
मैं तो खिल -खिल उठी | गुड्डे -गुड़िया को हाथों में झुलाती हुई भाग चली गुड़िया नगर की ओर I उसे वहाँ का राजा बना दिया I जिससे गुड्डा हमेशा खुश रहे और मेरी गुड़िया को लेकर भाग न जाये Iभाग जाता तो- - - मेरा क्या हाल होता - - - -आप ही जरा सोचो - - -I
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वे भागे -भागे गये ,खटर -पटर की आवाज के साथ लौट आये I एक मिनट को लगा भूचाल आ गया है I
उनकी -इस खटपटिया गाड़ी में सारा गुड़िया नगर समा गयाI
मुन्ना ढोलक को गले में लटकाकर जोर से थप -ठप करने लगा I
मंजू का भाई मुस्कान उड़ेलता छोटे --छोटे - हाथों से कीर्तन करने के मजीरे आपस में भिड़ाता
उसका दोस्त मेले से कागज का बिगुल ले आया I मुँह से बजाते ही पों -पों की आवाज होती I
मेरी सखियाँ कोयल से गीत गाती आगे बढ़ रही थीं I
शैतान चुन्नू गुड्डे -गुड़िया का रथ खींचते समय बार बार झटका दे देता I मेरी तो जान ही निकल जाती- - - कहीं गिर गये तो ----!
खट पटिया गाडी से तो जरूर कभी बौनी गुड़िया गिर जाती तो कभी लम्बू पर चतुर तुनतुनिया उन्हें फिर बैठा देता I
अद्भुत थी बारात I
मंजू रथ केपीछे से गेंदा -गुलाब की बरसात करते हुए अपनी खुशी छिपा नहीं पा रही थी I
घर के पास ही एक तिकोना मैदान था I बारात उसके चक्कर लगाती रही I जब वह थक गयी तो मेरे दरवाजे पर आकर रुक गई I
मैंने गुड्डा -गुड़िया को छोटे -छोटे फूलों की मालाएं पहनाई I खुशी मेरे चेहरे से छलकी जाती थी Iधीरे से उन्हें रथ से उतारकर अन्दर ले गई I
गोल -गप्पे और चाट -पकौड़ी देख बराती ढोल -मजीरा छोड़ उन पर टूट पड़े I कुछ मक्खी की तरह बालूशाही ,इमारती और लड्डू से चिपक गये I बाबा ने बारातियों को चूरन और टाफियां भी दीं I
विदा का समय आ गया I बाराती खुश ,मैं उदास I
-मेरी गुड़िया पराये घर जा रही है , कैसे रहूँगी उसके बिना I
--अरे इसमें दुखी होने की क्या बात है !तुम उसे चाहे जब ले आना I
-ओह मंजू ---तू समझती नहीं !ऐसा कहना जरूरी है Iगौरी दीदी जब ससुराल जा रही थीं तो मौसी ने ऐसा ही कहा था I वे उसे गले लगाकर रोई भी बहुत थीं I मेरे तो आंसू ही नहीं निकल रहे---- मेरी गुड़िया भी नहीं रोती--- अव मैं क्या करूँ !
दादी -बाबा ,चाची -अम्मा ने हमारी बातें सुन लीं I हँसते -हँसते उनका तो पेट दुखने लगा और आँखों से आँसू निकल आये I
मैंने समझा वे बहुत दुखी हैं ,उनका दुःख मुझसे देखा नहीं गया और दहाड़ मारकर रो पड़ी I
अचानक बारात से शोरगुल उठने लगा - - - - -
नहीं जायेगा ...नहीं जायेगा
ससुराल से दूल्हा नहीं जायेगा
ले आई ...ले आई
गुड़िया गुड्डे को ली आई I
मैं परेशान हो उठी I
-मुन्ना-- क्या हुआ !
-मुझे कुछ नहीं हुआ दूल्हे राजा को कुछ हो गया है | वह तो अपने घर जाना ही नहीं चाहता I
-क्यों ?
-खूब लड्डू -कचौरी खाने को जो मिले हैं ,अब तो ससुराल में बैठकर रोज माल -पुए उड़ायेगा I
मैं तो खिल -खिल उठी | गुड्डे -गुड़िया को हाथों में झुलाती हुई भाग चली गुड़िया नगर की ओर I उसे वहाँ का राजा बना दिया I जिससे गुड्डा हमेशा खुश रहे और मेरी गुड़िया को लेकर भाग न जाये Iभाग जाता तो- - - मेरा क्या हाल होता - - - -आप ही जरा सोचो - - -I
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जवाब देंहटाएंघर जवाई बना लिया गुड्डे को ! स्वार्थी है तुम्हारी गुडिया !
कभी सोंचा है की गुड्डे की मम्मी पापा कितना दुखी होंगे ...किस मनहूस घडी में गुडिया को देखा था !
गुडिया को विदा कर देना चाहिए समझा बुझा कर....
शुभकामनायें !
कहाँ कहाँ की सैर कर आये हम भी आपकी इस बाल कहानी में ...
जवाब देंहटाएंवैसे सतीश जी की बात भी ठीक ही है ...आपकी तरह गुड्डे के माता -पिता भी तो सोचते होंगे ना !
बचपन की निराली बातों को सँजोकर रखना शायद आसान है लेकिन उनको शब्दबद्ध करना निहायत मुश्किल है। आपका यह प्रयास 'बचपन के गलियारे' मुझे इस अर्थ में बहुत अच्छा लगता है। बाबूराम बढ़ई ताऊ, बेदा की अम्मा, गौरी दीदी, चाची आदि के कार्य-व्यवहार के बहाने अनजाने ही इसमें उन दिनों की संस्कृति भी पिर ही जाती है। प्रयास करें कि अनूपशहर की संस्कृति के अन्य पहलू भी इस बहाने गहराई के साथ इन गलियारों में आते रहें।
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंआप कि बाल कहानी के रूप में सस्मरण के रूप में अच्छी लगी ,
सादर
बचपन याद आ गया .और अपनी गुडिया भी पर हमारी गुडिया का गुड्डा इतना अच्छा न था वो ले गया हमारी गुडिया को :(.
जवाब देंहटाएंbahut hi pyaari yaaden... apni gudiya bhi yaad aa gai
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें सदा सुहानी...अच्छी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबचपन सभी का ऐसा ही होता है, मुझे मेरी गुडिया की शादी याद आ गई।
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