॥ 5॥ सब से भली चवन्नी
सुधा भार्गव
मैं जब छोटी थी पढ़ती कम ,खेलती ज्यादा I पर पिता जी का अरमान -- मैं खूब पढूँ - - पढ़ती ही जाऊँ -- - -वह भी बिना ब्रेक लिए I
दादी की असमय मृत्यु के कारण उनकी पढ़ाई में बहुत अडचने आईं I किसी तरह वे बनारस से बी. फार्म कर पाए I अब मेरे द्वारा अपनी इच्छाएं पूरी करना चाहते थे पर मेरी तो जान पर बन आई I
सारे दिन पढ़ाई - - -पढ़ाई ,नये -नये काम सीखो और रिजल्ट भी अब्बल I जरा भी छुटके मुन्ना भाई से हुई खटपट तो सारा दोष मेरा Iपट से आवाज आती - - - -मुन्नी ---किताब लाओ ---- जरा देखूँ --क्या पढ़ा है I बड़े शौक से इंगलिश पढ़ाते मगर महीने में एक बार I जरा स्पेलिंग बताने में हिचकिचाई बस -- गरजना -बरसना शुरू I फिर तो जो याद होता वह भी भूल जाती I लगता जीभ तलुए से चिपक गयी है I
उस रात तो गजब हो गया I दिसंबर का महीना ,कड़ाके की ठण्ड Iकमरे मे पक्के कोयलों की अंगीठी जल रही थी I हम भाई -बहन उस के पास बैठे गर्मी ले रहे थे और माँ खाना गर्म कर रही थीं I पिताजी को पढ़ाने की धुन ने आन दबोचा I उनकी कसौटी पर खरी न उतरी तो किताब फाड़कर दहकते कोयलों के हवाले कर दिया Iधूँ-धूँ करके होली जल उठी I आंसुओं के धुंधलके में पिता जी पहचाने ही नहीं जा रहे थे I कभी वे कंस नजर आते तो कभी हिरण्यकश्यप I
वे माँ से बोले --
इसके बस की पढ़ाई -लिखी नहीं I कल से स्कूल भेजना बंद I नौकरों की छुट्टी करो और इससे करवाओ घर का सारा काम I
मैं समझ गयी सिर पर आसमान टूट पड़ा है पर उसके नीचे पूरी तरह दबने से पहले भागी बाबा के कमरे में I पिताजी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि बाबा के सामने से मुझे खींच कर ले जायें I तब भी घबराई सी नजरें दरवाजे की ओर ही लगी थीं I जिसका डर था वही हुआ I चौखट के बाहर खड़े -खड़े ही पिता श्री ने इशारा किया --निकलकर आ I मैं भला लक्ष्मण रेखा क्यों पार करने लगी I जल्दी से बाबा के पलंग की मसेरी उठाई और धीरे से उनके पास लेट गयी I बाबा करवट लेकर लेटे थे चिड़िया की सी नींद उनकी आह्ट पाते ही पूछने लगे ---
-बेटी क्या बात है ? तेरा बाप गुस्सा क्यों हो रहा है ?
-पता नहीं बाबाजी ,बिना बात ही गुस्सा हो रहे हैं I
-सोजा -- --सोजा सुबह तक उसका गुस्सा ठंडा हो जायेगा I
बाबा जी ने मेरी तरफ करवट बदली और स्नेह से मेरे माथे पर हाथ रखकर थपकी देने लगे I अपना सुरक्षा कवच पा कर नन्हें शिशु की तरह निंद्रा की गोदी में झूलने लगी |
सबेरे -सबेरे उनके खिले चेहरे को देखकर कोई कह नहीं सकता था कि कल बालकाण्ड के साथ -साथ लंका कांड इन्होंने ही किया था I
सोच -सोचकर दिमाग फटा जा रहा था कि स्कूल कैसे जाऊँ I मेरी बेचैनी पिता श्री समझ गये बोले -
स्कूल जाने से पहले चवन्नी (२५ पैसे का पुराना सिक्का )
लेते जाना चाट -पकौड़ी के लिए I
-स्कूल कैसे जाऊँ ?किताबें तो आपने - - - - I
-१० बजे जैसे ही दुकान खुलेगी एकदम नई किताब खरीदी जायेगी और तुम्हारे पास पहुँच जायेगी |
चवन्नी कि नाम पर झूमने सी लगी थी i नई किताब की खुशबू भी अच्छी लगी |
पिता जी का रौद्र रूप दिमाग से पल में उड़न-छू हो गया और दूसरी लहर उसमें समा गई--- - - - --
मेरे पिताजी दुनिया के सबसे अच्छे पिता हैं |
मन ही मन खिचड़ी पकाने लगी - - आज तो अपनी सहेलियों को इस चवन्नी से बेर -मूंगफली खिलाऊंगी I
आह !मेरी प्यारी चवन्नी - - - I
उसे चूमती -पुचकारती स्कूल चल दी I
* * * * *
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जवाब देंहटाएंबचपन की स्मृतियां भी प्यारी होती हैं और भूलती नहीं।
जवाब देंहटाएंआप विराम या अन्य चिन्ह एक जगह छोड़ कर क्यों लगाती हैं। मेरे विचार से वे शब्दों के बाद बिना छोड़े लगाना चाहिये। नहीं तो वे अक्सर दूसरी लाइन पर आ जाते हैं।
कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।
बचपन की कुछ स्मृ्तियाँ ताउम्र बनी रहती हैं.....
जवाब देंहटाएंबढिया!
अति सुन्दर, सटिक, एक दम दिल कि आवाज.
जवाब देंहटाएंकितनी बार सोचता हु कि इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है.
अपनी ढेरों शुभकामनाओ के साथ
shashi kant singh
www.shashiksrm.blogspot.com
बचपन की यादों को आदमी कभी भी नहीं भूलता|
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत् में आपका स्वागत है। बचपन सबको प्यारा लगता है, बचपन की स्म़तियां मुस्कराने को मजबूर कर देती हैं। इन ब्लॉगों पर भी आपका स्वागत् है- http://jyotishniketansandesh.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंhttp://jyotishniketana.blogspot.com/
बहुत सुंदर लिखा है
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंacchi rachna
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbachapan ki yade sada hi taja rahti hai.badhiya prastuti.
जवाब देंहटाएंसुधा मेम !
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
आप कि ''चवन्नी ''' आज के बच्चो के लिए एक रूपया बना गया है , बच्चो को आप ने अपने बचपन के ज़रिये '' चवन्नी '' पहेली के समान लगती होगी ,
आभार एक बाल रूप हमे भी दिखने के लिए .
साधुवाद !
सुधा मेम !
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
आप कि ''चवन्नी ''' आज के बच्चो के लिए एक रूपया बना गया है , बच्चो को आप ने अपने बचपन के ज़रिये '' चवन्नी '' पहेली के समान लगती होगी ,
आभार एक बाल रूप हमे भी दिखने के लिए .
साधुवाद !
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
bahot sunder.
जवाब देंहटाएंऐसा ही कुछ कठोर अनुशासन हमने भी भुगता है। अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंमित्रवर
जवाब देंहटाएंखुशी हुई --आपने बचपन के झूले में झूलते-झूलते इस ब्लांग की सैर की । आपकी टिप्पणियों से बहुत प्रोत्साहन मिला। इसके लिये बहुत धन्यवाद । आशा है भविष्य में भी इसी प्रकार सहयोग बनाये रखेंगे।
सुधा भार्गव