नये वर्ष की नई अभिलाषा ----

बचपन के इन्द्र धनुषी रंगों में भीगे मासूम बच्चे भी इस ब्लॉग को पढ़ें - - - - - - - -

प्यारे बच्चो
एक दिन मैं भी तुम्हारी तरह छोटी थी I अब तो बहुत बड़ी हो गयी हूं I मगर छुटपन की यादें पीछा नहीं छोड़तीं I उन्हीं यादों को मैंने कहानी -किस्सों का रूप देने की कोशिश की है I इन्हें पढ़कर तुम्हारा मनोरंजन होगा और साथ में नई -नई बातें मालूम होंगी i
मुझसे तुम्हें एक वायदा करना पड़ेगा I पढ़ने के बाद एक लाइन लिख कर अपनी दीदी को अवश्य बताओगे कि तुमने कैसा अनुभव किया I इससे मुझे मतलब तुम्हारी दीदी को बहुत खुशी मिलेगी I जानते हो क्यों .......?उसमें तुम्हारे प्यार और भोलेपन की खुशबू होगी -- - - - - -I

सुधा भार्गव
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सोमवार, 17 अगस्त 2015

राजस्थान पत्रिका

         आज सुबह ही सुबह राजस्थान पत्रिका के वेब ब्लॉग कॉर्नर में अपने ब्लॉग ' बचपन के गलियारे' के बारे में कुछ लिखा देख आश्चर्य मिश्रित खुशी की सीमा न रही । जिज्ञासा वश एक सांस  में ही उसे पढ़ डाला । अपनी खुशी को आप सबके साथ  शेयर करना चाहती हूँ और इसके लिए आर्यन शर्मा जी को बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ।  
वेब ब्लॉग पर चर्चा 
दिनांक -21 मार्च,2015 



बचपन के गलियारे
     
     अक्सर हम लोगों को यह कहते सुनते हैं कि काश!हम बच्चे ही रहते। दरअसल,उनके मन में ऐसे विचार जिंदगी की आपाधापी से परेशान होने के बाद आते हैं, जिसमें उलझकर वे अपने बारे में बिलकुल भी नहीं सोच पाते। बड़े होने पर जिम्मेदारियों का बोझ इस कदर हावी हो जाता है कि हम छोटी-छोटी खुशियों का भी लुत्फ नहीं उठा पाते ,जबकि बचपन में ऐसी ही छोटी छोटी खुशियाँ असीम आनंद देती हैं। ऐसे में हमारा आज का ब्लॉग यूजर्स को बचपन के गलियारे में ले जाएगा  और उसी फन एवं एंजॉयमेंट का अहसास कराएगा,जो कभी हम बचपन में किया करते थे।      'बालशिल्पके  ब्लॉगर सुधाकल्प (सुधा भार्गव)बेंगलूर निवासी हैं। ब्लॉग में बच्चों को संबोधित करते हुए वे कहती हैं ,’एक दिन मैं भी तुम्हारी तरह छोटी थी। अब तो बहुत बड़ी हो गई हूँ। लेकिन छुटपन की यादें पीछा नहीं छोडतीं। उन्हीं यादों को मैंने कहानी किस्सों का रूप देने की कोशिश की है।लिहाजा ब्लॉग न सिर्फ बच्चों का मनोरंजन करेगा ,बल्कि बड़ों को भी अपने भोलेपन के दौर की खुशबू का अहसास करवाएगा। ब्लॉगर ने अपने बालसंस्मरण  ,’धोबी –धोबिन का संसार , में बचपन में घर पर गंदे कपड़े लेने आने वाले धोबी-धोबिन  के बारे में बताया है। उनका हुलिया कैसा था। वे कैसे परिधान पहनते  थे और घर के लोगों को कैसे संबोधित करते थे। । भले ही ये बातें आज फिजूल लगें,लेकिन बालमन हमेशा जिज्ञासा का केंद्र रहा है । धमाचौकड़ी,शैतानी और उस बचपन की मासूमियत को ब्लॉग के फ्रेम में बड़ी खूबसूरती के साथ जड़ा गया है,जिसमें आप खो जाएँगे।
ब्लोह का पता है-

-आर्यन शर्मा  





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